रात अकेली आई थी
पर हम तनहा सो गए
पूछा ना मैंने उनको कभी
हमसे ख़ताएँ हो गयी
सुबह जो उनसे बातें की
बातों में हम उनके हो गए
सिलसिले यूं बनते गए
इक दूजे में हम खो गए
मालूम था मेरे दिल को नहीं
हमसे ख़फ़ा कब हो गए
पूछा बहोत मैंने मिन्नत भी की
पर वो ना माने और खो गए
दिन भर मेरा दिल जलता रहा
और हम पराये हो गए
समझाया मैंने उनको बहोत
खुश थे हॅसते या रोते हुए
बातों पर मेरे यकीं था नहीं
ग़मगीन हर शाम वो हुए
रूठे वो हमसे पहले भी थे
जुदा आज लेकिन हो गए
कोशिश मैंने बहोत की मगर
हम फिर से तनहा हो गए
ए काश मुझपे वो करते यकीं
गुस्से से उनके हम रो गए
चाही थी मैंने उनसे दोस्ती
पर नफरत में उनके हम सो गए