Tuesday, February 25, 2020

नाराजगी

नाराजगी 

काश की वो हमसे नाराज हो जाते
रूठ जाते, और मुँह फुलाते
चेहरे पर अपने, गुस्सा दिखाते
चाहत पे मेरी, मुँह फेर जाते

आँखें मटकाते और पलकें झपकाते
मुट्ठी को अपने कस के दबाते
पैरों को फिर वो पटकते, झिड़कते
गुस्से से गालों को सुर्ख कर जाते

मैं उनको मनाता , गा कर सुनाता
चाहत के अपने किस्से बनाता
धीरे से उनको बुलाता, बैठाता
आँखों में उनके मैं दुनिया बसाता

सीने से लगाता, मैं धड़कन सुनाता,
हाथों को उनके, मैं हाथों में मेरे,
रखता हमेशा , भरोसा दिलाता
तुम्हीं हो , जो दिल में धड़कता
है मेरे, तुमसे ही, मैं हूँ, चमकता,
थिरकता हुआ सा , किलकता
हुआ सा, वो मान जाती,
जब ऐसे मनाता, जब ऐसे मनाता।

Sunday, February 23, 2020

पकाऊ

पकाऊ

पक रहे हैं वो
पकाऊ ज़माने से
ज़िन्दगी के मजे लिए
बस पकने के बहाने से

पूछो तो कहते हैं
बस ऐसे हीं कहा था
कमबख्त पकता कौन नहीं
इस बेबाक ज़माने से

शायर खा लिया क्या
ऐसा पूछते हैं लोग
बताऊं उन्हें जब लफ़्ज़ों में
जो हैं शायर के खजानों से

क़िसी की कहानी में क़िस्मत
और क़िसी की क़िस्मत में कहानी है
तेरे जहाज़ से तारे दिखते हैं
हमारे तारों में रवानी है

बेचैन

क्यों दूर हो जाते हैं लोग पास हो कर भी
क्यों पास रहता है कोई जो दूर चला गया बरसों पहले
क्यों तड़पता है दिल उसके लिए जिसके सीने में दिल ही नहीं
क्यों धड़कनें देती हैं धोखा और धड़कती नहीं उसके लिए जो हमसे मोहब्बत का इकरार करता है
क्यों जिंदगी हसीन नहीं लगती हर रोज
क्यों जिंदगी के इंतज़ार में जीवन गुजर जाता है
क्यों दोस्तों की पुकार अनजान लगने लगती है
क्यों अनजाने बस यूं हीं कभी कभी अपने से लगने लगते हैं
क्यों आसमान कभी बहोत छोटा लगता है
क्यों कब्र कभी जिंदगी से ज्यादा बड़ी लगती है
क्यों हम तुम अकेले होते हैं सबके साथ होते हुए भी
क्यों चेहरे पर मुस्कुराहट होती है अंदर से रोते हुए भी
क्यों हाथ कोई थामे नहीं जब हमारी राहें सच्ची होती हैं
क्यों पैर फिसलते हमारे जब उम्र कच्ची होती है
क्यों नहीं रहे बचपन में हीं यूं हो गए बड़े अचानक से
क्यों लोगों की निगाहों में गिरने का डर रहता है
क्यों दिल की बात जुबां खुद हीं नहीं कहता है
क्यों खून बहने तक रिश्ते टूट जाते हैं
क्यों अपने हीं अपनों का खून भी बहाते हैं
या खुदा किन सवालों में तुमने हमको यहां डाला है
बेचैन सब हैं चारो तरफ बस तेरा ही हवाला है।

Saturday, February 22, 2020

मेरी मेहबूबा मेरी दोस्त

मेरी मेहबूबा मेरी दोस्त

हम उनके लिए सुबह नाश्ता, दोपहर का खाना और शाम की चाय बनाएं
हम उन्हें दिन भर की अपनी दास्तान सुनाएं
दर्द होने पर उनको अपने सीने से लगाएं
नींद ना आने पर उनके सो जाने तक उनको सहलाएं
चोट लगने पर उनकी सिसकियों को चुप करवाएं
उनके खुश होने पर खुशी से फूले ना समाएं
मिर्च लगने पर उनके लिए खुद की मिठाई खिलाएं
काम बिगड़ जाने पर साथ बैठ कर हाथ बटाएं
उनके मां बाबा से उनके पसंद नापसंद फोन पर लिखवाएं
हर सुबह उनको चुपके से चूम कर प्यार से उठाएं
रंग बिरंगे कपड़े, जूते, गहने, जेवर उनको पहनाएं
उनकी सुंदरता उनको अपनी कविताओं में गा कर सुनाएं
उनके गिरने पर उनको अपना सहारा दें और उठाएं
चाय कॉफी के साथ उनको सनफीस्ट के चिप्स खिलाएं
उनको खुश करने को उनकी हाथों की रेखाएं उनको दिखाएं
उनके हौले से मुस्कुराने भर से अपने दिल में तूफ़ान जगाएं
उनकी छोटी छोटी चुटकुलों पर ठहाके मार कर हसें और हसाएं
किसी दोस्त से अनबन होने पर उनको समझाएं
ना समझने पर उनके दोस्तों को शैतान बनाएं
उनकी आंखों में अपनी अलग दुनिया बसाएं
उनके गुस्से पर अपना सब कुछ हार जाएं
उनके इशारों पर बिना हॉर्न बजाए गाड़ी धीमे चलाएं,
सर्दियों में उनको कम्बल ओढाएं, गर्मियों में चादर हटाएं
उनके चेहरे की बूंदों को ठंडी हवाओं से सुखाएं
होठों पर उनके लिपस्टिक लगाएं, और पैरों में सैंडल
कभी कभी शाम को खाने पर जाएं जहां मेज पर हो कैंडल
प्यार से उनको जब तब गले लगाएं और हाथों पर कीकली चलाएं
ऐसी मेहबूबा मुझसे पूछती हैं कि वो हमसे दोस्ती में हैं
या किसी और को पूछें की मोहब्बत कैसे करवाएं।

Thursday, February 20, 2020

तूफ़ान भरी ज़िन्दगी

तूफ़ान भरी ज़िन्दगी 

अभी अभी एक तूफ़ां आते आते रुक गया
हमने पूछा तो कहा तुझ पर तरस आ गया
जिनकी ज़िन्दगी में आँधियों की तबाही हो
झेला है इस कदर की उनको तूफ़ां की कद्र नहीं

आहिस्ते से बोला बोल तुझे इस बवंडर से बाहर ले चलूँ ?
घबरा कर मैंने कहा हमें आँधियों की आदत है
ख़ुदा की फितरत का मालूम नहीं पर
ज़िन्दगी इबादत है, बवंडरों में घर बना लूँगा
कहीं तुम बदल न जाओ फिर, हम जैसों
का क्या होगा जो आये थे किस्मत से
ठहरे हैं जुर्रत से, लोगों की जिल्लत की
आदत है ठोकर की, पर जाते हैं इज़्ज़त से।


अपना बनाओगे किसी को


अपना बनाओगे किसी को

सुबह की धूप बस छू कर कहीं छुप गई
यूं लगा जैसे तुम अपने बालों से उसे छुपा रहे थे

रात की करवटों से पड़ी चादर की सिलवटें
अब तक तुम्हारे लौटने का इंतज़ार करती हैं
पूछती हैं मुझसे तुम कब आओगे और मैं सोचता हूं
कुछ जवाब तुम दे दो और कुछ हम दे दें।

बागीचे के फूलों के बीच बैठक वाली चाय की प्याली
पूछती है तुम्हारा पता और ढूंढ़ती है हरेक के होंठ लगकर,
जो हवा मेरे खिड़कियों में कैद है उस दिन से बहारों की सुगंध लिए
और घड़ी की टिक टिक चाहती हैं फिर से बजना
जो तुम आओ तो इनमें जान आए जो जहान रुकी हुई है
वो एक बार फिर से रूबरू हो दिल और दिल्लग्गियों से
 फिर हम भी सांस रोक सकें फिर से और ये बोल सकें
तुम्हारे सीने से लगते ही कलेजे में ठंडक नहीं आग लगती है
क्या तुम भी कभी ऐसा बोलना चाहोगे, हवाओं को पता
अपना बताना चाहोगे, अपना बनाओगे किसीको?
या हर एक रांझा तुम्हारे लिए कुरबान होता रहे यही
दिखाना है ज़माने में तुम्हें या फिर सभी को?

आशिक़ी

आशिक़ी

उनके हंसने से है आशिक़ी
और सांसें मुस्कुराने से
आंखों के उनका भोलापन
तड़पाती हैं मुझे।

पलकों का यूं झपकाना
और भीगे भीगे होंठ
नकबाली तेरे नाक पर
बस खींचे तेरी ओर।

घायल हैं तेरे इश्क़ में
जानें कितने ही रांझे
ऐ हूर और ज़न्नत की परी
खूबसूरती तुझसे साजे।

Tuesday, February 18, 2020

ज़िन्दगी कट रही है


ज़िन्दगी कट रही है 

सुबह के नास्ते दमदार
दिन भर मस्ती भरमार
दोस्तों के संग बातें धुआँधार
शाम में मनोरंजन की बौछार

फिर भी वो बोलते हैं
ज़िन्दगी कट रही है

ना काम का जिक्र
ना पैसे की फ़िक्र
ना खर्च का हिसाब
बने बैठे वो नवाब
ना मुँह पर लगाम
ना आँखों में सलाम

फिर भी वो बोलते हैं
ज़िन्दगी कट रही है


इश्क़ के बोल

इश्क़ के बोल 

हम उन्हें आप कहें या कहें तुम
दिन इसी में निकल गया
दिल की बातें की कम

वो चालीस के और हम साल एक कम या ज्यादा
मन में उनके शंका है इश्क़ रहेगा आधा
रोमियो जूलिएट या मजनू लैला सा इश्क़ तो अब होता नहीं
राधा कृष्ण के मिलने के कम और किस्से बिछड़ने के हैं ज्यादा

चलो छोड़ो उमर को ए दोस्त दिल से मिलो गले
और कानों में मेरे कुछ ऐसा बोलो जो
उस कसक को मीठा कर दे जब तक ये रात ढले।