कभी झनक झनक,
कभी खनक खनक
कभी हँस कर
आंखें मटक मटक
कभी गुस्सा बातों बातों में
कभी होठों पे मन का गुबार
कभी सीने से वो लिपट लिपट
कभी पकड़ो हाथ तो झिटक झिटक
कभी बातें होती सिसक सिसक
कभी सोती मेरे कंधे पर
कभी जाती फिर वो खिसक खिसक
कभी पुचकारे वो हिलस हिलस
कभी झट पट, खट खट खड़काती
कभी सिरहाने वो सरकाती
कभी प्यार से कानों में कुहु कुहु
कभी सीने में भर अंगारे
भड़के और भरती हुंकारें
कभी लबों को मेरे लब से सिल
कभी हिरणी बन चंचल चंचल
मनचली वो करती मनमानी
कभी मिलती कर सोलह श्रृंगार
कभी सामाजिक बंधन को पार
जब करती वो ये सब कुछ तो
समझो जुड़ गए हैं दिल के तार
समझो जुड़ गए हैं दिल के तार
समझो जुड़ गए हैं दिल के तार