Friday, December 17, 2021

दो पल की ज़िन्दगी


दिल गीला गीला जरा सा
दिन पीला पीला उजड़ा सा
रातें ठंढी ठंढी लगे क्यों
होंठ सूखे सूखे हुए क्यों

आँखें नम हो क्यों है जाती
बातें कम हीं क्यों हो पाती
आहें ठंढी ठंढी निकलती
बाहों में वो अब न पिघलती

लम्हे रुक रुक से गए हैं
तनहा हम हम से हुए हैं
दूर तुम हम से हुए हो
भूल तुम हमको गए हो

बातें क्यों होती नहीं हैं
साथ होते भी मन कहीं हैं
चुप चुप रहने लगे हैं
पल पल कहने लगे हैं

रूठे रूठे रहने लगे हो
झूठे झूठे कहने लगे हो
नज़रें चुराने लगे हैं
दर्द को छुपाने लगे हैं

पलकें झुकती नहीं अब
हम पर रूकती नहीं अब
जाने क्या हो ये गया है
चैन मेरा छिन सा गया है

हम तुम खिलते हैं हमदम
तन मन मिलने दो हरदम
मिलन में हीं दिन बिताएं
कर लें सब हम ख़ताएँ