Tuesday, April 9, 2019

Late night shero shayari

काम इतना कर
की काम हो जाए
जाम इतना भर
शाम खो जाए

राहों में पैदल
जब तुम चलो
याद मेरे साथ
की भी हो आए

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जो मैं लिखूं
उन्हें हम पर
यकीन ही नहीं
या खुदा अब
मेरी चिठ्ठियों को भी
ज़माने की
आदत ए तौहीन होगी

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हमारी शायरी उनके लिए चोरी की है
उन्हें क्या पता क्या क्या चुराई गई है
गर चोरी पर ही नजर थी तुम्हारी
कहां गुम थे जब नजरें चुराई थी गई।

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हमसे वो पूछें
कसमें खाने को
हमें यकीन हो चला
दर्द है ज़माने को

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अब तो सच्चाई में भी
डर लगता है
कहीं हमसे वो
ये ना कहें
किसने बोला था
नजरें चुराने को।

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दिन चार और हैं
हमारे साथ चलने के गर
क्यूं ना कह दो जो
दिल में हैं
होठों पे नहीं पर

वक़्त गुजरता है
यूं हीं गुजर जाएगा
पर कोई दिलवर
या कोई प्रवीण
कब साथ चल पाएगा?

कभी बातें ईधर की
या फिर कभी उधर की होती
उन यादों में कभी
वक़्त गुज़र पाएगा?

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सूनी सूनी राहों में भी
जब साथ चलते थे
मैं एक कदम आगे
और तुम एक पीछे
रह कर बात करते थे

रात के अंधेरे
हर शाम
हमारी
राह तकते थे

हवाएं सन सना कर
चलती तो थी मगर
हमारी बातों से हीं
उनको पंख
लगते थे

शामें अब भी
सुनसान होगी लेकिन
नजरें अब भी टिकी होगी वहीं मेरी
जहां एक कदम पीछे हम रखते थे
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