ढूंढता हूँ तुम्हें छिप छिपा कर
जब कभी तुम बोलते हो
कहो या न कहो
हमें यकीन हो जाता है
बातें हमारी ही होती होंगी
लब जब कभी भी खोलते हो
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हमें उन पर
और उन्हें हम पर
इश्क़ जताना नहीं आता
उम्र कितनी भी हो जाए ओ प्रवीण
तुम्हें तो आज भी हाल-ए-दिल बताना नहीं आता
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