Wednesday, April 10, 2019

इश्क़ की परछाई

जब सर्दी थी 
तो  सिसक सिसक 
और बारिस में फिर 
थिरक थिरक 
कर बोल तुम्हारे 
सुनकर मन 
रातों को 
मचला करता था 
सपने में आयी 
करती थी 
तुम ज्वाला जैसी 
धधक धधक 
तन को शीतल 
कर जाती थी 
फिर सुबह सवेरे 
कान में मेरे 
मीठी बातें 
करती थी 
उन मीठी बातों 
को सुनकर मैं 
मद मस्त मलंग 
मैं रहता था 
जब तुम रोते 
मैं जलता था 
जब तुम हॅसते 
मैं खिलता था 
क्यूँ रूठ गए 
तुम मुझसे यूं 
सब वादे भी 
वो टूट गए
हंसना रोना 
वो साथ तेरा 
पीछे गलियों में 
छूट गए 
अब तनहाई में 
रहता हूँ 
सपनो में 
तुमसे कहता हूँ 
कब तक तुम 
दूर रहोगे यूं 
अब आ जाओ 
मेरी बाँहों में 
लेलो अब मुझको 
पनाहों में 
ना अलग करो 
खुद को मुझ से 
जो इश्क़ किया 
तरुणाई में 
हैं उम्र की 
हम अगुवाई में 
वो अब भी 
सुलग कर रहता है 
हम दोनों की
परछाई में।