उल्फतों के दौर में हम तनहा हैं
और वो कहीं भीड़ में खोये हुए से
हम हैं जिन्हे रातों को नींद नहीं आती
और वो सपनो की दुनिया में सोये हुए से
हम उनके इक दीदार को तरसे हुए हैं
और वो अपने अश्कों में दीपक संजोये हुए से
इश्कबाजी की ज़ुर्रत कितना भी कर लें
पर वो अपनी धुन में हीं उलझे हुए से
और वो कहीं भीड़ में खोये हुए से
हम हैं जिन्हे रातों को नींद नहीं आती
और वो सपनो की दुनिया में सोये हुए से
हम उनके इक दीदार को तरसे हुए हैं
और वो अपने अश्कों में दीपक संजोये हुए से
इश्कबाजी की ज़ुर्रत कितना भी कर लें
पर वो अपनी धुन में हीं उलझे हुए से