Saturday, April 13, 2019

रास्ते और मंज़िलें

रास्ते पर मैं अकेला ही चला चलता गया
सबको पीछे छोड़ा मैंने, रास्ता मिलता गया

चलनेवाले रास्तों पर यूं अकेले क्या हुए
रास्तों ने धर दबोचा मंज़िलों के नाम पे

जो मिली मंज़िल मुझे तो ये पता मुझको चला
मंज़िलें मंज़िल न होती बस कहीं ठहराव था

मंज़िलों के और आगे और भी हैं मंज़िलें
जी ले अपनों के लिए तू फतह कर ले सब किले

रास्तों ने आज तक दिया साथ ना देंगे कभी
वो अकेले कल भी थे होंगे अकेले हर कहीं

मंज़िलों की चाहतों को छोड़ने का प्रण करो
ज़िन्दगी है चार दिन की, रंग हर दिन में भरो