Wednesday, April 24, 2019

Take charge and enjoy!

When the oceans scream high
But your life runs dry

You have things yet to try
But the time plays sly

When you've missed being in joy
But your work lets you fry

When you sleep open eye
But your dreams fly by

Ask this question as to why
Are you living and passers-by
Are happier than thy
Leave these don't be shy

Let the life give you pie
While you fly in the sky
And your friends drive by
Whoa! Better get back to enjoy!

इश्कबाजी

उल्फतों के दौर में हम तनहा हैं
और वो कहीं भीड़ में खोये हुए से

हम हैं जिन्हे रातों को नींद नहीं आती
और वो सपनो की दुनिया में सोये हुए से

हम उनके इक दीदार को तरसे हुए हैं
और वो अपने अश्कों में दीपक संजोये हुए से

इश्कबाजी की ज़ुर्रत कितना भी कर लें
पर वो अपनी धुन में हीं उलझे हुए से

मिलके बिछड़े हुए दोस्त

राहे मोहब्बत पर चलते रहे हम
उनकी थी अब बारी
आँखों में देखा हाथों को थामा
बातें भी कर ली सारी

समझे नहीं वो कैसे समझाउं
आती नहीं दुनियादारी
घर पे ले आये माँ को बिठाये
चली यादों की रेलगाड़ी

किस्से पुराने जो मैंने संजोये
इतनी जो की थी तैयारी
बोला नहीं मैं समझे नहीं वो
पर क्या हुआ है तो यारी

मिलना जो होगा मिलते रहेंगे
दिल हल्का हो या हो भारी
यारों की यारी अपनी जगह है
मुस्कानों की कर लो सवारी

Saturday, April 13, 2019

दिल थाम ले

बातें हुई जाती , कहीं थम जाये ना ये सिलसिला
मुलाकातें भी होंगी, मन माने क्यों ना भला

आँखें वो उनकी, जैसे झील में कमल
जब पलकें वो झुकाएं, लगे थम गया हो पल

धीमी धीमी धीमी, होठों से वो बोलें
रोकें इश्क़ कैसे, हो रहा हौले हौले

कैसे उनको मैं बताऊँ, इश्क़ हो रहा मुझको
ए दिल तू कर ले तसल्ली, और थाम ले खुदको

रास्ते और मंज़िलें

रास्ते पर मैं अकेला ही चला चलता गया
सबको पीछे छोड़ा मैंने, रास्ता मिलता गया

चलनेवाले रास्तों पर यूं अकेले क्या हुए
रास्तों ने धर दबोचा मंज़िलों के नाम पे

जो मिली मंज़िल मुझे तो ये पता मुझको चला
मंज़िलें मंज़िल न होती बस कहीं ठहराव था

मंज़िलों के और आगे और भी हैं मंज़िलें
जी ले अपनों के लिए तू फतह कर ले सब किले

रास्तों ने आज तक दिया साथ ना देंगे कभी
वो अकेले कल भी थे होंगे अकेले हर कहीं

मंज़िलों की चाहतों को छोड़ने का प्रण करो
ज़िन्दगी है चार दिन की, रंग हर दिन में भरो

Wednesday, April 10, 2019

दीदार

हम उनके दीदार में आंखें बिछाये थे
कि उन्होंने कहलवा भेजा
घर का तेरे रास्ता खराब है


अब उन्हें मैं क्या बोलूं दोस्तों
राह देखते देखते मेरा इश्क़ में
ज़नाज़ा निकल गया

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गुल से गुलिस्तां है और तुमसे हमारी दुनियां

गुल से गुलिस्तां है, और तुमसे, हमारी दुनियां
हैं कमी मुझमें, और थोड़ी सी, है तेरी कमियां 

मिले हैं तन बदन, तेरे मेरे, ये सबको है खबर 
दिल के ज़ज़्बात, समझ मेरे, अब देर न कर 

गुल से गुलिस्तां है, और तुमसे, हमारी दुनियां
हैं कमी मुझमें, और थोड़ी सी, है तेरी कमियां 

लब मिले हैं, तेरे मेरी, लबों से जबसे
क्या कहूं आग है, ये कैसी, लगी है कबसे 

गुल से गुलिस्तां है, और तुमसे, हमारी दुनियां
हैं कमी मुझमें, और थोड़ी सी, है तेरी कमियां 

तेरे छूने से, उमरें ऐसे, अरमानों के मंज़र
न छुए जब मुझे, दिल में मेरे , चले हैं खंज़र

गुल से गुलिस्तां है, और तुमसे, हमारी दुनियां
हैं कमी मुझमें, और थोड़ी सी, है तेरी कमियां 

खामोशियाँ

दिल के कुछ अल्फ़ाज़ उन्होंने यूं कह दिए 
धड़कनें तेज़ हुईं और मेरे लब सिल गए 

मन में आंधी थी गज़ब का तूफां था 
पलकें गिरकर सम्भलती थी बस ये समां था 

बुत हो गयीं थीं वो करीब आने से 
पिघल कर मोम हुईं मेरे छुए जाने से 

थिरकते होठों ने जो कहानी थी की बयां
जो अलफ़ाज़ कह न पाए कह रही थी खामोशियाँ 

इश्क़ की परछाई

जब सर्दी थी 
तो  सिसक सिसक 
और बारिस में फिर 
थिरक थिरक 
कर बोल तुम्हारे 
सुनकर मन 
रातों को 
मचला करता था 
सपने में आयी 
करती थी 
तुम ज्वाला जैसी 
धधक धधक 
तन को शीतल 
कर जाती थी 
फिर सुबह सवेरे 
कान में मेरे 
मीठी बातें 
करती थी 
उन मीठी बातों 
को सुनकर मैं 
मद मस्त मलंग 
मैं रहता था 
जब तुम रोते 
मैं जलता था 
जब तुम हॅसते 
मैं खिलता था 
क्यूँ रूठ गए 
तुम मुझसे यूं 
सब वादे भी 
वो टूट गए
हंसना रोना 
वो साथ तेरा 
पीछे गलियों में 
छूट गए 
अब तनहाई में 
रहता हूँ 
सपनो में 
तुमसे कहता हूँ 
कब तक तुम 
दूर रहोगे यूं 
अब आ जाओ 
मेरी बाँहों में 
लेलो अब मुझको 
पनाहों में 
ना अलग करो 
खुद को मुझ से 
जो इश्क़ किया 
तरुणाई में 
हैं उम्र की 
हम अगुवाई में 
वो अब भी 
सुलग कर रहता है 
हम दोनों की
परछाई में। 

हाल-ए-दिल

ढूंढता हूँ तुम्हें छिप छिपा कर 

जब कभी तुम बोलते हो 
कहो या न कहो 
हमें यकीन हो जाता है 
बातें हमारी ही होती होंगी
लब जब कभी भी खोलते हो 

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हमें उन पर 
और उन्हें हम पर 
इश्क़ जताना नहीं आता 
उम्र कितनी भी हो जाए ओ प्रवीण 
तुम्हें तो आज भी हाल-ए-दिल बताना नहीं आता 

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Tuesday, April 9, 2019

Late night shero shayari

काम इतना कर
की काम हो जाए
जाम इतना भर
शाम खो जाए

राहों में पैदल
जब तुम चलो
याद मेरे साथ
की भी हो आए

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जो मैं लिखूं
उन्हें हम पर
यकीन ही नहीं
या खुदा अब
मेरी चिठ्ठियों को भी
ज़माने की
आदत ए तौहीन होगी

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हमारी शायरी उनके लिए चोरी की है
उन्हें क्या पता क्या क्या चुराई गई है
गर चोरी पर ही नजर थी तुम्हारी
कहां गुम थे जब नजरें चुराई थी गई।

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हमसे वो पूछें
कसमें खाने को
हमें यकीन हो चला
दर्द है ज़माने को

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अब तो सच्चाई में भी
डर लगता है
कहीं हमसे वो
ये ना कहें
किसने बोला था
नजरें चुराने को।

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दिन चार और हैं
हमारे साथ चलने के गर
क्यूं ना कह दो जो
दिल में हैं
होठों पे नहीं पर

वक़्त गुजरता है
यूं हीं गुजर जाएगा
पर कोई दिलवर
या कोई प्रवीण
कब साथ चल पाएगा?

कभी बातें ईधर की
या फिर कभी उधर की होती
उन यादों में कभी
वक़्त गुज़र पाएगा?

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सूनी सूनी राहों में भी
जब साथ चलते थे
मैं एक कदम आगे
और तुम एक पीछे
रह कर बात करते थे

रात के अंधेरे
हर शाम
हमारी
राह तकते थे

हवाएं सन सना कर
चलती तो थी मगर
हमारी बातों से हीं
उनको पंख
लगते थे

शामें अब भी
सुनसान होगी लेकिन
नजरें अब भी टिकी होगी वहीं मेरी
जहां एक कदम पीछे हम रखते थे
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