इस बेजुबान दिल पे रहम कीजे
होंठ जो अर्ज नहीं कर पा रहे
वो बिन कहे भी समझ लीजे
ये हमारी गुजारिश है जरा सुन लीजे
दीदार ए महबूबा हो ऐसी ख्वाहिश
है परवाने की, कभी रहम कीजे
नज़रों को जरा और पास आने दीजे
होठों को तकल्लुफ क्यों देना
सांसों से ही अर्ज किया कीजे
हर शाम हम पे दीदार की इनायत कीजे
दिल कह रहा है आप मशरूफ कहीं हों तो
हमें अपने पास हाजिरी को बुलाया कीजे ।