Monday, November 22, 2021

मशरूफ

 इस बेजुबान दिल पे रहम कीजे

होंठ जो अर्ज नहीं कर पा रहे 

वो बिन कहे भी समझ लीजे 


ये हमारी गुजारिश है जरा सुन लीजे 

दीदार ए महबूबा हो ऐसी ख्वाहिश 

है परवाने की, कभी रहम कीजे 


नज़रों को जरा और पास आने दीजे

होठों को तकल्लुफ क्यों देना 

सांसों से ही अर्ज किया कीजे 


हर शाम हम पे दीदार की इनायत कीजे

दिल कह रहा है आप मशरूफ कहीं हों तो 

हमें अपने पास हाजिरी को बुलाया कीजे ।