कह दो ज़माने से दीवाने हुए हम
परवाने जलते थे कभी हम नहीं हैं कम |
सूरज निकलने से पहले दस्तक कई बार
खटखटाये दिल कि धड़कन और उनके द्वार |
मोहब्बत न कर बैठें ये डर उन्हें सताता
कोई उन्हें बताये हमें और कुछ न आता |
ये दिल की आग है जो बुझाये ना बुझे
लपटों में ज़िंदगी है कुछ सुझाये ना सूझे |
वक़ालत करें वो जम के डरती नहीं किसी से
अदालत हों शहर वाले या इश्क़ आशिकी के |
फ़िदा हैं उनपे हम भी बस इक नज़र कि प्यास है
होगी इनायत जल्दी यह जिगर को आस है |