छोटी छोटी ख्वाहिशें,
छोटे हैं सपने
देख देख दिल खुश होता,
जब भी मिलते अपने
अलस सुबह की, चाय भगाती
लिपटे तुम, मेरे तन मन में
कैसे भगाऊं मोरी राधा
तेरी प्यास की अगन, कण कण में
वक्त मिले, होठों को अपने
मेरे होठों पर रख देना
प्यास लबों की बुझ ना पाए
धड़कन भी फिर तुम सुन लेना
मिलने दो अपने तन को मेरे तन से
सिहरन को बस चलने दो
जो तुफां है वो मचल रही
ना रोको उन्हें मचलने दो
बस दिन हैं चार जवानी के
फिर सोचें क्यूं, क्या सही गलत
जो दिल आए, वो कर डालें
दिन रात तू बस अब आ के लिपट ।