रंक रंक है लोकतंत्र है नोटों की बरसात
लूट सके जो लूट सके तो खोल के अपना हाथ
खोल के अपना हाथ रे भैय्या लूट ले सारा माल
काल ने घेर रखा है देश को, तय जाना पाताल
तय जाना पाताल देश को, लोकतंत्र के अन्दर
घोटालों के बीच फंसे हैं गांधीजी के बन्दर
नेता सारे चोर हमारे हँस के कहते साथी
इस बारी जो वोट दिला दो, आँगन बांधें हाथी
आँगन बांधें हाथी, काठी के मकान तुरवाकर
ईंट के घर बनवाऊँगा मैं, कार खड़ी करवाकर
रंक बेचारे भूख के मारे होंठ सिला कर रहते
लोकतंत्र की मार को मैय्या हर एक दिन वो सहते
हर एक दिन वो सहते जब तक खून अंगार न बनता
ऐसे सारे लोग हमारे नक्सलबारी जनता
उल्फा, ईलम, आतंकी के नाम पुकारे जाते
लोकतंत्र में भरते है बस स्विस बैंक के खाते ...