आओ बदलें देश को
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क्या भला और क्या बुरा है
जानता अब मैं नहीं
देश को स्वतंत्र करने
फिर जुटें हम सब यहीं
गए गोरे छोड़ कर जब
हम बँटे ही रह गए
टुकरे टुकरे दिल के अरमां
आसुओं में बह गए
कल के गोरे आज नेता
कुछ भी तो बदला नहीं
आओ बदलें देश को अब
राम, सिख, जो और रहीम
देश का हर कोना अपना
दलदलों मैं है फसा
ढूंढ कर है खोलना
अब सिकंजा जो है कसा
मौत भी आए अगर तो
हँस के हम कुर्बान हों
आने वाले युग की खातिर
आओ हम परवान हों
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If you want you can listen to this poem in my voice ...