रक्त हिम न होने पाए
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क्या देखता है
सामने जा
प्रखर कर आवाज़ अपनी
बाजुओं में भर ले दम तू
सीना चौडा कर ले अब तू
रण की डंका बज गई है
मौत तेरी सज गई है
माँ के अश्रुओं की धारा
रोकने का वक़्त है अब
देर न कर
बजा भेडी
शंख तेरा फड़क रहा है
प्रज्ज्वलित कर ज्वाला तेरी
डाह कर दे दुश्मनों को
लहू से कर सात फेरी
रक्त हिम न होने पाए
श्वेत फिर वो हो न जाए
लाल रख इसको हमेशा
फख्र कर तू इसमें ऐसा
कि देखते रह जाए फिर सब
दुनिया तेरी गाथा गाये !
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If you want, you can listen to the poem in my voice ...