मेरे दिल के कोने में
वो आ बैठी थी महिनों से
ना बतलाया ना पूछा था
पर सुकूं मिला था सोने में
जो सदियों से इतराती थी
घनघोर अँधेरी रातों में
तारे गिनता था पहले अब
दिल कि धड़कन थी तेज मगर
मस्ती सी छायी रहती थी
मैं ढूंढ बहाने जाता था
फिर हँसता और हंसाता था
उन सुर्ख गुलाबी होठों पर
मैं तार इश्क के कसता था
बच्चों सी बातें करते थे
छोटी बातों पे लड़ते थे
रूठम- रुठाई मनम-मनाई
ये दौर हमेशा चलते थे
महिनों तक चलता रहता यूं
जो ना इश्क जताई जाती थी
वो खफा हुईं, ऐसे रूठीं
मेरी रूह आग में जलती थी
पर वही हुआ जो होना था
हरदम हीं खोया है मैंने
एक और सितारा खोना था ...