ग़मों के बाज़ार में
सब ख़ुशी ढूंढ रहे
या खुदा गमजदा हैं सारे यहां
बस मरहम ढूंढ रहे
ख्वाहिशों से जकड़े
सपनों को बुन रहे
हसीन पल के उम्मीद में
वो इस पल को खो रहे
घायल किया उम्मीद ने
और ज़िंदा भी रख रहे
लगाया है उम्मीद जिनसे
वो सबको परख रहे
जो बिकती यहां पे खुशियाँ
बाज़ार-ए-सरेआम
दिल के लुटे फिर लुटते
जब लगते ख़ुशी के दाम
जब से लगाई प्रीति
इस प्रवीण ने
दिलजलों की सारी रीति
आग़ाज़ दे रहे।