Thursday, June 15, 2017

अलविदा



अलविदा
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कल अकेला मैं खड़ा था
आज सबके साथ हूँ 
क्या हुआ जो कल अकेला 
मैं जो फिर से हो गया । 

आने या जाने से मेरे 
या किसी भी और के 
ना ये दुनिया रूकती है 
और ना रुकेगी ये कभी ।  

साल तीन -एक हो गए अब 
दिन - ब - दिन सब सीखते
कान खींचे और कभी - कभि
आँखे भी थे भींचते । 

मैं कड़क हूँ मानता हूँ
पर कड़कती धूप में 
दीये गीले रक्खे जाते 
कौड़ियों के सूप में । 

और जलाये फिर ये जाते
धू - धू करती आग में 
फिर सजाये जाते हैं वो 
दिवाली के दीप में । 

हमने सीखा और सिखाया
हाथ पकड़े साथ में
हो सके तो याद रखना 
कोई कभि -किसी पाठ में ।

अलविदा यारों अभी सब 
चैन की सांसें भरो 
खुश रहें हम आप भी 
ये प्रार्थना हीं सब करो ।