अलविदा
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कल अकेला मैं खड़ा था
आज सबके साथ हूँ
क्या हुआ जो कल अकेला
मैं जो फिर से हो गया ।
आने या जाने से मेरे
या किसी भी और के
ना ये दुनिया रूकती है
और ना रुकेगी ये कभी ।
साल तीन -एक हो गए अब
दिन - ब - दिन सब सीखते
कान खींचे और कभी - कभि
आँखे भी थे भींचते ।
मैं कड़क हूँ मानता हूँ
पर कड़कती धूप में
दीये गीले रक्खे जाते
कौड़ियों के सूप में ।
और जलाये फिर ये जाते
धू - धू करती आग में
फिर सजाये जाते हैं वो
दिवाली के दीप में ।
हमने सीखा और सिखाया
हाथ पकड़े साथ में
हो सके तो याद रखना
कोई कभि -किसी पाठ में ।
अलविदा यारों अभी सब
चैन की सांसें भरो
खुश रहें हम आप भी
ये प्रार्थना हीं सब करो ।