Saturday, September 25, 2010

तुम पर रंग डारूं पिया ऐसे

तुम पर रंग डारूं पिया ऐसे, तू मेरा बन जाए
राधा के प्रेम में कान्हा, तब तू सन जाए

मैं हूँ तेरे रंग की प्यासी, कृष्णा देर ना कर
तेरे प्रेम के सागर में से, मांगू चुटकी भर

मुझे अपने संग रंगीले, रंग दे लाल मगर
मुझे छोड़ कन्हैय्या मत जा, फिर तू किसी डगर

मुझ पर रंग डारो बनवारी, मैं तेरी हो जाऊं
तेरे चरणों की मैं दासी, तुझमें खो जाऊं

कृष्ण ही जीतेगा

क्यूँ चुप चुप है, दिल की बातें आज बता दे यारा
ऐसा ना हो जाय चली वो, दिल का खोल पिटारा

खोल पिटारा दिल का तू अब, ना कर इसमें देरी
खोने का डर सच्चा हो, जो बात ना तूने छेड़ी

बात जो तूने छेड़ी, तो फिर दो बातें बस तय हैं
हाँ बोले या ना बोले वो, दिल की तेरी जय है

दिल की तेरी जय है क्यूंकि, हाँ बोला यदि उसने
दिल उसका भी तेरा होगा, वो भी तेरे बस में

ना बोला जो उसने तुझको, चिंता क्यूँ है करता
जीतेगा, बस कृष्ण वही, जो कोशिश करता रहता

Thursday, September 23, 2010

मैं अब नहीं तेरी सजनी

आज शाम वो मिलने आयीं
बोली सुन साजन मेरे
धर्म अलग है मेरा तेरा
संभव नहीं अग्नि- फेरे

बात सिर्फ जो धर्म कि होती
मैं पूजती इश्वर सब तेरे
बहुत अलग हैं हम तुम साजन
कहते शुभचिंतक मेरे

मैं हूँ चुप चुप तू बडबोला
नहीं मिलती जोड़ी अपनी
छोड़ मोह ये प्यार का अब तू
मैं अब नहीं तेरी सजनी

तू लम्बा पतला और दुबला
और मैं ठहरी मोटी सी
लोग हसेंगे हम पर सारे
हाय जोड़ी है ये कैसी

मैं हूँ सुन्दर गोरी बाला
और तुम काले दिखते हो
हम दिल्ली वालों के आगे
बिहारी तुम नहीं टिकते हो

मैं बोलूँ वो जाट की भाषा
मस्त सुनायी देती है
तुम अपनी भाषा बोलो लगे
मार पिटाई होती है

मैं मुंबई में रहने वाली
दिल्ली से पढ़कर आयी
तुम जो ठहरे गाँव-गंवारे
नागपूर तुमको भायी

मैं सोती हूँ ठाठ बाठ से
उठती हूँ मैं आठ बजे
गाँव के जैसी सोच तुम्हारी
उठते हो तुम पांच बजे

हाय बिचारी पिस जाऊंगी
तुमसे मैं लेकर फेरे
गलती हो गयी माफ़ करो
की नैन-मटक्का संग तेरे

दिल टूटा है मेरा भैय्या
गीता पढने हूँ बैठा
कृष्ण की थी सौ सौ बालाएं
मुझे एक मिला वो भी झूठा

Wednesday, September 22, 2010

इश्क जताई नहीं जाती

मेरे दिल के कोने में
वो आ बैठी थी महिनों से
ना बतलाया ना पूछा था
पर सुकूं मिला था सोने में
जो सदियों से इतराती थी
घनघोर अँधेरी रातों में
तारे गिनता था पहले अब
दिल कि धड़कन थी तेज मगर
मस्ती सी छायी रहती थी
मैं ढूंढ बहाने जाता था
फिर हँसता और हंसाता था
उन सुर्ख गुलाबी होठों पर
मैं तार इश्क के कसता था
बच्चों सी बातें करते थे
छोटी बातों पे लड़ते थे
रूठम- रुठाई मनम-मनाई
ये दौर हमेशा चलते थे
महिनों तक चलता रहता यूं
जो ना इश्क जताई जाती थी
वो खफा हुईं, ऐसे रूठीं
मेरी रूह आग में जलती थी
पर वही हुआ जो होना था
हरदम हीं खोया है मैंने
एक और सितारा खोना था  ...

People sometimes get so constrained.