Wednesday, January 27, 2010

गीले बोल

शाम सबेरे यूं लगता है
जैसे कोई सिरहाने हो...
सर पे मेरे हाथ को फेरे
प्यार कि जैसे पहली सुबह हो...

आँखें खोलूँ वीराना है
जैसे दिल में दर्द चुभन हो...
तन्हाई भी सूनी सूनी
गीले बोल और आँखें नम हो ...

याद जो आती उनकी है अब
गीले होंठ और भीगा तन हो...
कालचक्र जो घुमे वापस
फिर मैं सहेजूँ दिन सारे वो...