Thursday, April 30, 2009

The Morning Sunshine (भोर की धूप)

भोर की धूप
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सुबह सुबह ही आँखें खोले
बाहर निकला कोयल बोले
आँगन बाड़ी साफ़ सफाई
भीनी धूप है ताप लो भाई
भोर की चादर ओढ़-सोढ़ के
तकियन को सिरहाने रख के
लम्बी सी लो एक जम्हाई
पीठ के नीचे खेंच चटाई
अलस भोर की मन ललचाये
किलकारी बच्चों की भाए
दबे पावं फिर निंदिया रानी
और ममता की बोली- बानी
सपनों के संग आँख मिचौली
मीठी घी की पूरण पोली
करवट ले कर ली अंगराई
धूप भोर की बड़ी सुहायी
मींच - मींच कर अंखियन खोले
अलसाया मन फिर से डोले
हाय रे मस्ती धूप शराबी
मुझे बनाये भूप नवाबी
जितनी भी मैं करूँ बड़ाई
हर दम कम होगा वो भाई ।
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If you want you can listen to this poem in my voice ...