Sunday, April 26, 2009

दीपक की एक कविता (जिंदगी की ये कहानी)

My friend Deepak is a great poet. I didn't know he writes so well. Here is a poem from his new blog that I liked so much that I stole it from his blog just to see how great it would have been to read it in hindi... Please see his blog for more such excellent poems and ideas...
क्यूँ
हो तुम आज
उदास भला

देखो ये पल कुछ
कह रहा

देखो ये चाँद
कुछ कह रहा
कल मैं भी था
बुझा हुआ,
अमावस ने था आके
मुझे मिटा दिया,
हैं गिर के उठना
उठ के गिरना
धर्म मेरा,
पूर्णिमा की रात
मैं खिला हुआ;


देखो ये सूरज
कुछ कह रहा,
कल ग्रहण था
मुझ पर पड़ा,
अदने से चाँद
की देखो मजाल,
कि था मुझे
छिपा गया,
पर आज ऐसा
कौन हैं
जो देख ले मुझे एक
नजर
भर के जरा

देखो ये पेड़
कुछ कह रहा,
आके तेज तूफ़ान
आन्धिओं ने,
कल था मुझे
झुका दिया,
पर आज देखो मेरी
लहलहाती डालिओं पे,
पंछियों ने आ कर
घर बना लिया

जिंदगी कि ये कहानी,
धुप छाँव की जुबानी,
कभी हैं चढ़ना कभी उतरना,
सीखा हैं कहाँ
इसने एक सा रहना,
छोड़ो अब ये उदासी
बहने दो आके लब पे वापिस
हँसी का एक झरना..........